ध्वनि प्रदूषण से बहरे हो जाएंगे 90 करोड़ लोग
सुमन कुमार
विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ के आंकड़े बताते हैं कि दुनिया भर में अभी लगभग 46 करोड़ 60 लाख लोग सुनने में परेशानी का अनुभव करते हैं यानी इतने लोगों को श्रवण की कोई न कोई समस्या है। यदि इस बारे में जरूरी कदम नहीं उठाए गए तो अगले 31 सालों यानी वर्ष 2050 तक यह संख्या बढ़कर 90 करोड़ तक पहुंच जाएगी। ये वक्त की जरूरत है कि सुनने की क्षमता को हानि पहुंचाने वाले कारकों की पहचान और उनसे निबटने के लिए जरूरी कदम उठाए जाएं।
गौरतलब है कि 12 से 35 वर्ष की आयु के एक अरब से अधिक युवाओं को मनोरंजन से जुड़े शोर शराबे के विभिन्न स्तरों के लगातार संपर्क में रहने के कारण कम सुनाई देने का खतरा बढ़ जाता है। 65 वर्ष से अधिक आयु के लगभग एक-तिहाई लोग सुनने में अक्षम होने लगते हैं।
श्रवण की समस्या के प्राथमिक कारणों की पहचान
विरासत में मिली बीमारियों, संक्रमण, तेज शोर, दवाओं और उम्र बढ़ने के के कारण कम सुनाई देने की समस्या हो सकती है। इनमें से किसी एक या कई कारणों को मिलाकर ये परेशानी हो सकती है और टीकाकरण और तेज शोर से दूरी बनाने जैसी सावधानियों अपना कर इस खतरे को बहुत हद तक दूर किया जा सकता है। रूबेला, मैनिंजाइटिस और कण्ठमाला जैसे संक्रमणों से तो सामान्य टीकाकरण के जरिये ही पार पाया जा सकता है।
मेडिकल एसोसिएशन ऑफ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष और हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया के प्रमुख पद्मश्री डॉक्टर के.के. अग्रवाल के अनुसार, ‘समय के साथ हर दिन होने वाले शोर के संपर्क में आने से हमारी सुनने की क्षमता और भविष्य में श्रवण विकार की स्थिति पर प्रभाव पड़ता है। लगातार शोर के संपर्क में आने से उच्च आवृत्ति संवेदी तंत्रिका से संबंधित परेशानी हो सकती है। वैज्ञानिक तरीके से देखें तो सामान्य कानों के लिए 90 डेसीबल (शोर की आवृति मापने का पैमाना), जो लॉन की घास काटने की मशीन या मोटर साइकिल द्वारा किए गए शोर के बराबर है, के संपर्क में 8 घंटे तक, 95 डीबी 4 घंटे, 100 डीबी केवल 2 घंटे, 105 डीबी शोर के संपर्क में महज एक घंटे तक रहने की अपेक्षा की जाती है। शोर के इन पैमानों पर स्वीकृत मापदंड से अधिक समय के लिए रहना कानों के लिए अच्छा नहीं है और ये आपको बहरा बना सकता है। लाइव रॉक संगीत के दौरान 130 डीबी से अधिक का शोर होता है और इसे 20 मिनट से ज्यादा देर तक लगातार नहीं सुनना चाहिए।
पटाखों से होने वाला शोर जो कि 120 से 155 डीबी तक या इससे भी अधिक हो सकता है के संपर्क में ज्यादा देर रहने से गंभीर सेंसिनुरल हियरिंग लॉस, दर्द, या हाइपरकेसिस (तेज शोर से जुड़ा दर्द) की समस्या हो सकती है। अधिकांश बड़े बम 125 डीबी से अधिक का शोर पैदा कर सकते हैं।
ऐसे लोग जिन्हें उनके काम के कारण लगातार 85 डीबी से अधिक के शोर में रहना पड़ता है उन्हें अपने कानों की सुरक्षा के लिए जरूरी उपाय जैसे कि मफ या प्लग आदि का इस्तेमाल करना चाहिए।
कुछ सुझाव
- स्कूलों और अस्पतालों जैसे क्षेत्रों के आसपास यातायात का प्रवाह जितना संभव हो उतना कम होना चाहिए। साइलेंस ज़ोन या नो हॉर्न प्रदर्शित करने वाले साइनबोर्ड इन संस्थानों के पास लगाया जाना चाहिए।
- तेज आवाज वाले हॉर्न, फटे साइलेंसर वाली मोटरसाइकिलों और ज्यादा आवाज करने वाले ट्रकों पर सख्ती से पाबंदी लगाया जाना चाहिए।
- पार्टियों और डिस्को में लाउडस्पीकरों के उपयोग के साथ-साथ सार्वजनिक घोषणा प्रणाली के इस्तेमाल को हतोत्साहित किया जाना चाहिए।
- शोर से संबंधित नियमों को कड़ाई से लागू किया जाना चाहिए और उन क्षेत्रों में सख्ती से लागू किया जाना चाहिए जो साइलेंस जोन हों।
- सड़कों पर और रिहायशी इलाकों में पेड़ लगाना ध्वनि प्रदूषण को कम करने का एक अच्छा तरीका है क्योंकि वे ध्वनि को अवशोषित करते हैं।
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